क्या वक्त था जब सालगिरहों पर
मिल कर बैठते थे सब रिश्ते
खुद ही पका कर खाते थे पकवान
खुशियों का स्वाद बाँटते थे रिश्ते
कभी जन्मदिन तो कभी त्योहार
हसीं ठहाके और मुस्कान थे रिश्ते
एक दूजे की तकलीफ़ है आज
कभी जो दवा बन जाते थे रिश्ते
अब व्हाट्स अप पे दे देते है बधाई
मिलके गले जो कभी लगाते थे रिश्ते
दिल से निभाने वालों से रिक्त है अब
बंधन या ज़रूरत के हैं अब रिश्ते
पुराने भी है तो दम नहीं कुछ खास नहीं
सिर्फ़ और सिर्फ़ नाम के है अब रिश्ते
रिश्ते
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