वतन मेरे बता मुझको मुहब्बत तुझसे इतनी क्यों
तेरी मिटटी की खुशबू से मुझे इतनी मुहब्बत क्यों
आखिर क्यों तेरी खातिर मेरा ये दिल तड़पता है
तेरी ही आन की खातिर ‘कुँवर’ मरता है मिटता है
कहें क्या आरज़ू है तेरी खातिर और क्या अरमां
की मुझको बस बता दे मेरी खातिर क्या तेरा फ़रमाँ
मुझे अब पुर-सुकूं ये ज़िन्दगी बस रास ना आये
तमन्ना है की मेरी ज़िन्दगी तेरे काम तो आये
मेरा दिल आरज़ू बस इतनी सी हर दिन संजोता है
मै लाऊंगा ख़ुशी हर दिल में जो की आज रोता है
मेरा भी ज़िक्र होगा एक दिन उस कत्लखाने में
जहाँ आशिक है सारे तेरे भेजे इस ज़माने ने
हाँ है शौक हमको तेरी जानिब जां निसार ये हो
तेरे जो क़र्ज़ हैं मुझपर की उसका हक अदा तो हो
मुझे है फक्र की तूने मुझे आँचल में पाला है
मेरी हर चाल को तूने ही तो हर पल संभाला है
की ग़र अल्लाह मेरी नेकियों का कुछ सिला जो दे
है मेरी इल्तजा वो तुझसे ही मुझको मिला फिर दे
वतन की मुहब्बत
Posted by Ashutosh
September 9, 2013
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