न जाने कैसी बेचैनी थी
दम सा घुट रहा था
मुझे क्या पता था
आखिरी पल था वो मेरा
मौत बहुत नजदीक थी
बिल्कुल घर की दहलीज पर
पर इन नजरों को इंतजार था
तुम्हारा
और ये नजरें जो बार-बार
मुझसे कह रही थी
बहुत थक गयी हूँ
अब तो इन्हें बंद कर लेने दो
और यूँ ही इंतजार करते करते
मेरी नजरे टिक-सी गयी
थम सी गयी
घर की उसी दहलीज पर
ना जाने आज सब मुझे घेरे हुए थे
इस उम्मीद से की शायद
अब कुछ बोलूंगी
पर अब उठूं भी तो किसके लिये
बहुत वर्ष हुए मुझे सोए हुए
अब मैं बस इस हरी घास में
शांति से सोना चाहती हूं
वो आखिरी पल
by
Tags:
Leave a Reply