कल सुबह एक बच्चा मेरी चाय लेकर आया था
शlयद उस चाय ने ही उसका बचपन जलाया था
कुछ उसकी आठ या नो साल उम्र रही होगी
ये सब देख उसकी माँ पर क्या गुजर रही होगी
वो भी उसे सबकी तरह पड़ना चाहती हे
उसे इस उम्र में कम करता देख पछताती हे
उसे भी बस यही गम सता रहा हे
वो देखो उससे रूठकर उसका बचपन जा रहा हे
कोई महेंगे महेंगे खिलोनो से खेलता हे
कोई बस दिन रात अपने मालिक की मार झेलता हे
कोई मखमल के बिस्तर पर सोता हे
कोई पूरी रात ठण्ड में बैठकर रोता हे
कोई अपनी हर जिद पूरी करवाता हे
कोई खुद ही अपना घर चलता हे
इस बचपन में भी वो सबकी झूठन खा रहा हे
वो देखो उससे रूठकर उसका बचपन जा रहा हे
किसी का बाप हे नहीं कोई दारू में धुत रहता हे
कोई अपने बच्चे को छोड़ दुसरो की खुसी में रहता हे
क्या हे उसकी खता जो इस उम्र भी दुःख झेलता हे
भगवान तू भी हे खुश क्यों उनके जज्बातों से खेलता हे
उन्होंने तो अभी ठीक से बोलना भी नहीं सिखा था
अभी तो उनका देखा हर रंग फीका था
और तू उन्हें ठोकर पे ठोकर दिए जा रहा हे
वो देखो उससे रूठकर उसका बचपन जा रहा हे
कपडे नहीं उसपर भीख मागने से शर्माता हे
उसकी खुद्दारी तो देखो इस उम्र में भी कमाता हे
उन ठेकदारो से पूछो जो इनसे भीख मंगवा खुद खाते हे
सर्म होती नहीं उनमे या बेच कर खा जाते हे
इस बचपन को कोई सवारना नही चाहता हे
खुद की अच्छी इस्थ्ती होने पर दोस्रो को ज्ञान सुनाता हे
किसी कम्बक्त को बुडापे में भी बचपना आ रहा हे
वो देखो उससे रूठकर उसका बचपन जा रहा हे
Leave a Reply