माना के मैं नाकारा था…
पर माँ की आँख दा तारा था…..
एक सोणी कुड़ी के जोबन पे….
मैं भी साड्डा दिल हारा था…..
पर भूल के रिश्ते-नाते सब….
जन्नत से बड़ी सौगातें सब……
मैंने तैन्नु सोणी ख़ुद नु , महिवाल कर दिया…..
सरहद की मिट्टी देख, तेरा रंग लाल कर दिया……
बाबा बोले के बेटे ने , क्या उम्दा फर्ज़ निभाया है…..
अम्मा बोली लल्ला ने, भारत माँ का कर्ज़ चुकाया है…
बहना बोली के भाई ने, सम्मान रख लिया राखी का…..
जिंदड़ी बोली उसनु मैंने, अज सच्चा इश्क़ सिखाया है…..
छुप सकता था हर दिल का ग़म, इन ऊंची-ऊंची बातों मे…..
पर अश्कों ने ज़ाहिर सबके दिल का हाल कर दिया…..
सरहद की मिट्टी देख, तेरा रंग लाल कर दिया……
इस बार मुझे छुट्टी लेकर, फिर गाँव नू अपने आना था….
इस बार मुझे बैसाखी पे, फिर झूम के भंगड़ा पाना था…..
इस बार मुझे एक लड़की से, कह देनी थी दिल की बातें….
इस बार मुझे कुछ यारों को, जी भर के गले लगाना था…..
हर एक हसरत की कुर्बानी, देकर एक अदने इंसां ने…..
सबसे ऊँचा भारत माँ का इक़बाल कर दिया……
सरहद की मिट्टी देख, तेरा रंग लाल कर दिया……
गर फिर से मुझको जन्म मिले, तो इसी धरा पर आऊँ मैं….
फिर देख तिरंगे की जानिब, जन-गण-मन को दोहराऊँ मैं…..
फिर से ख़ाकी वर्दी पहनूँ, फिर दुश्मन से टकराऊँ मैं….
फिर मिट्टी बन इस धरती की, ही मिट्टी मे मिल जाऊँ मैं…..
सात जनम जीकर भी जितना प्यार नहीं मिलता मुझको…..
एक मौत ने उससे ज्यादा मालामाल कर दिया……
सरहद की मिट्टी देख, तेरा रंग लाल कर दिया…..
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