है शर्म की बात किसके लिए??

हैं सरहदों पे जो जागते
बस यही दुआ वो मांगते
खुश रहे हर एक वो
जो हैं जुड़े इस राष्ट्र से

सम-विषम परिस्तिथियों में भी
जो हैं पड़े,जो हैं अड़े
जो हैं अड़े,रह कर खड़े
है चाह नही उनकी कुछ भी
बस देश पर उनके कोई न चढ़े

जो अपनी साडी चाह मारकर
लड़ते हैं हमारे लिए
दे रहे नही सम्मान उन्हें
है शर्म की बात किसके लिए??


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