कभी युद्ध में और कभी हो विरत युद्ध की भू से
वीरों ने पूजा भारत माता को नित्य लहू से
कायर कोई जब करता है अप्रत्याशित हमला
प्राणाहुति के बोझ तले तब दब जाती है अचला
पर चुनौतियों से बिलकुल नवयुवक नहीं घबराते
सेना की भर्ती में बेटे उमड़ उमड़ कर आते
इसी चेतना को प्रभुता सर आँखों पर धरती है
इसी भाव को ही समस्त नरता प्रणाम करती है
किंतु मानवों में रहते हैं पशु-समूह कुछ छिपकर
वे ही करते नहीं सैन्य-क्षमता का समुचित आदर
जो स्वयं देशहित में कोई बलिदान नहीं करते हैं
वे नीच महाबलिदानों का सम्मान नहीं करते हैं
हर प्रयास करते हैं वे पौरुष को कम करने का
ज्ञान बाँचते हैं ये नव ऊधौ संयम रखने का
ये क्या जाने किन त्यागों से मिलता संरक्षण है
मातृभूमि पे शीश कटाने का क्या आकर्षण है
कोई करे प्रहार मगर निज शक्ति नहीं हम तोलें
रघुकुल के वंशज रिपु से संयम की भाषा बोलें
क्या परशुराम विचलित हों दुरबुद्धों की मनमानी से
रणचण्डी निज प्यास बुझा ले क्या ठंडे पानी से
क्या अर्जुन के शर तरकश में पड़े पड़े सड़ जायें
क्या नारायण चक्र सुदर्शन के रहते घबरायें
चौहानी तलवार म्यान में रखे जंग खा जाए
क्या भारत की संप्रभुता गुंडों को शीश नवाए
हमने हर आतातायी से लड़ अस्तित्व बचाया
पर इतिहास उठा कर देखो संयम से क्या पाया
जो लड़ता है उसे समूचा जग योद्धा कहता है
एक बार का भीरू भीरू ही मगर सदा रहता है
हमको प्रलयंकर तीखी आवाज़ उठानी होगी
विश्व पटल पर भारत माँ की साख बचानी होगी
नहीं चाहते हम कोई छिटपुट उपचार दुबारा
अब सीमा पर गूँजे हर हर महादेव का नारा
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