एक पुकार

बेटी हूँ मैं माँ तेरी सदियों से चली आई पहेली हूँ,
पूछूँ तुझसे एक ही सवाल क्यों सबके बीच अकेली हूँ।
एक ही कोंख से जन्म लिया फिर बेटियां ही क्यों रोती है,
हमको जुल्म सहता देख क्यों खुली आँख तू सोती है।
एक का स्वागत खुशियों से किया जन्म लेना खानदानी शान,
मुझ बेटी को कोंख में गिरा छोड़ दिया अंधेरों में गुमनाम,
कराह रही हूँ तेरे अंदर मत छीनो मेरी जान,
मुझ कली को पनहपने दो एक दिन होगा मुझपे अभिमान।
अरमानो का गला घोट सदा अपनों के लिए दिया बलिदान,
त्याग को मैंने नियति समझा यही बना मेरी पहचान।
बेटी हूँ मैं माँ तेरी सदियों से चली आई पहेली हूँ,
पूछूँ तुझसे एक ही सवाल क्यों सबके बीच अकेली हूँ।।

मैं एक नारी शक्ति हूँ जो खतरों में घिरी पड़ी हूँ,
माँ तुझको सब पता होगा किस हालत में पली बढ़ी हूँ।
चौखट से लांगों कदम तो हवशी पीछा कर देखते है,
टेढ़ी मेढ़ी नज़रों से नोच नोच अखियाँ सकते हैं।
मैं साठ साल की माँ तो कभी तो पाँच साल की बेटी हूँ,
ठरकी मर्दो की नज़रों में कैद मैं निहथ्था पड़ी लेटी हूँ।
क्या यही उनकी असली मर्दानगी क्या यही हैं उनका सच्चा बल,
अधिकारों को छीन सम्मान को रोंद किया मेरा अस्तित्व ओझल।
समाज के ठेकेदारों के बीच मैं खुलके सांस नहीं लेती हूँ,
बंद पिंजरें में कैद हमेशा सब जुल्मों को सहती हूँ।
बेटी हूँ मैं माँ तेरी सदियों से चली आई पहेली हूँ,
पूछूँ तुझसे एक ही सवाल क्यों सबके बीच अकेली हूँ।।

देवी सती की पति भक्ति प्रसिद्ध हुई तो अहिल्या के साथ अन्याय किया,
सीता माँ ने कदम कदम पर पवित्रता का सबूत समाज को दिया।
उर्मिला का त्याग हो या द्रौपदी दिया बलिदान,
हर युग किसी रूप में नारी देती आ रही बलिदान।
इतिहास के पन्ने पलट के देखों तो हर शण परीक्षा दी हैं,
मर्दों के अत्याचारों को सहकर भी औरत खरी उतरी हैं।
बेटी हूँ मैं माँ तेरी सदियों से चली आई पहेली हूँ,
पूछूँ तुझसे एक ही सवाल क्यों सबके बीच अकेली हूँ।।

बेटी हूँ माँ तेरी बनूँ मैं तेरा ही साया,
क्यों अब तक कोई ये समझ नहीं पाया,
औरत घर की शोभा हैं और जग जननी माता हैं,
तन मन कोई तिजोरी नहीं जो कोई भी लूट ले जाता हैं।
घर आँगन को रोशन करती लक्ष्मी का स्वरुप हूँ मैं,
बढ़ जाए जब अत्याचारी महा काली का रूप हूँ मैं।
पूजे होंगे हज़ारों देवता तब जाके मैं मिलती हूँ,
रिश्तों को प्यार के मोतियों से पिरोये हर आँगन में खिलती हूँ।
बेटी हूँ मैं माँ तेरी सदियों से चली आई पहेली हूँ,
पूछूँ तुझसे एक ही सवाल क्यों सबके बीच अकेली हूँ।।


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