ऐ! आज़ाद हिंद के पंछी सुन
आज़ादी के सपने बुन,
सन् 57 कि यादें सुन
कुछ धोखे कुछ वादे सुन,
सन् 97 के अन्याय सुन
फिर आज़ादी के सपने बुन,
सन् 61 की बर्बरता सुन
फिर आज़ादी के सपने बुन,
आज़ादी को हुए 68 साल
आज भी होता वही बवाल,
संविधान का एक-एक अक्षर
अंग्रेज़ियत से है साक्षर,
ऐ! आज़ाद हिंद के पंछी सुन
आज़ादी के सपने बुन,
मंगल पांडे, वीर भगत सिंह
आज़ादी के थे सच्चे सिंह,
याद दिलाता जलियाँवाला
दुर्भाग्यशाली वो दिन काला,
सन् 75 का आपातकाल
आज़ादी तो बन गई जाल,
हिंदी हैं हम, हिंदी हैं हम
वतन है हिंदुस्तान हमारा,
मैं और तुम रहें हमेशा
भारतमाँ की आँख का तारा।
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