जब भी होता किसी दर्दनाक घटना का जिक्र,
समस्त हिन्दुस्तानी हो जाते सिहर,
बात थी युगों-युगों पुरानी,
करते थे सब अंग्रेजों की गुलामी,
व्यापारी बन आई इस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में अपने कदम जमाएँ
डाली थी उन्होने हम सब में फूट,
फिर सब लोगों का सुख -चैन लिया लूट,
दाने-दाने को कर दिया था मौहताज,
नही बची थी हम भारतीयों की लाज,
बहुत बुरी थी गुलाम भारत की हालत,
होनी चाहिए भारतीयों को खुद पर लानत,
क्योकिं करोड़ों लोग उन कुछ ब्रिटिशों का नही पाए बिगाड,
नही तो वे सब हो जाते ताड़-ताड़।।
अनेक स्वतंत्रता सैनानियों ने देखा आज़ाद भारत का स्वप्न,
इसे सच करने के लिए किया उन्होनें बहुत प्रयत्न।
गुलामी की जनजीरों को तोडने के लिए कर दी अपनी जान कुरबान,
और बचा ली अपने देश की आन-मान-शान,
हिन्दुस्तान को अपना समझने वाले अंग्रेज,
एक दिन सैनानियों द्वारा दिए गए भेज,
समझते थे अंग्रेज खुद को शक्तिशाली,
निकाल दिए गए इस सर जमीन से दोनो हाथ खाली,
निकालकर उन दुष्टों का मन से खौफ,
चले गए वे हम वासियों को देष सौप।
हम बेकार ना जाने देंगे उन महापुरुषों का बलिदान,
देष को सर्वश्रेष्ठ बनाने के लिए लगा देंगे हम अपनी जान।
लेते है हम शपथ आज,
झुकने न देंगें इस देश का ताज।।
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