छोटे कस्बे का… छोटा लड़का…

छोटे कस्बे के लड़के अक्सर कम उम्र में घर की जिम्मेदारी संभालने के लिए घर छोड़ देते है। चार पंक्ति खुद पर रख कर उन्ही छोटे लड़कों को नज्र करता हूँ… सुनिएगा…

छोटी उम्र में… घर की…
जिम्मेदारी संभालने को…
काम पर… जाता हूँ।2।

घूमने को…
मन… मचले भी…
तो… मार देता हूँ…

छोटे कस्बे का…
लड़का हूँ… साहब…।2।

कभी जिन्दगी संवारने…
तो… कभी कमाने को…
घर से… बाहर रेहता हूँ।2।

मैं चाय का शौकीन हूँ। कल चाय पीने के लिए मैं छोटी सी टफरी पर पहुँचा। और चाय पीते हुए देखा के एक छोटे से लड़के पर चिल्लाते हुए उसके मालिक उसे गालियाँ दे रहा है। और वो छोटा लड़का इधर उधर भागता सभी को चाय दें रहा था। तब मेरे जेहन में लिखी हुई पिछली चार पंक्ति के साथ एक सवाल आता है। के…

माता-पिता से दूर विचलित मैं…
घर से बाहर… कैसे रेहता हूँ…

और अगली दो पंक्ति में जवाब देखिएगा के…

लोगो की गालियाँ सहता…
उनकी शख्त आवाज में भी
प्यार ढूंढता रेहता हूँ…

पापी पेट के खातिर…
कमाने को…
घर से… बाहर रेहता हूँ।

© Shams Amiruddin


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