ड्रैगन फुँफकारे, आग उगले कितना भी।
भारतवर्ष की सीमा न डरेगी, न काँपेगी।
ड्रैगन फुँफकारे …
माना था हमने उसे अपना ही भाई।
कहते थे हम हिंदी चीनी भाई भाई।
पर पीठ में घोंप दी उसने ऐसी छुरी।
सियाचिन की घास देने लगी दुहाई।
ड्रैगन फुँफकारे …
भूल गया नाशुक्रा चीन वह दिन भी।
दी थी हमने अपनी सदस्यता स्थाई।
भाता भारत का विरोध करना ही।
तन कर सदा अपनी आँखें तरेंरी।
ड्रैगन फुँफकारे …
चीन ने दी मारक सौगात कोरोना की।
पेंगोंग नहीं, तो गलवान पर की चढ़ाई।
गहराती रात में, इसने ताकत दिखाई।
कर्नल संग शहीद हुए बीसियों फौजी।
ड्रैगन फुँफकारे …
भाईचारा और दोस्ती तो बहुत निभ गई।
सदाशयता हमारी लगती अब कमजोरी।
देश की सीमा की रक्षा करना है जरूरी।
लेकर रहेंगे हम अपनी सारी मातृ भूमि।
ड्रैगन फुँफकारे …
अब न मनेगी चीनी लड़ियों की दिवाली।
न टिकटॉक से होगी यहाँ कमाई तुम्हारी।
न फलेगी फिरंगी व्यापार से राज की नीति।
इतिहास दोहराने की चाल रह जाएगी धरी।
ड्रैगन फुँफकारे …
समय बदला, युग बदला, सदी बदली।
विश्व में भारत की मान-प्रतिष्ठा भी बढी़।
(पर)
चीनी कर्मों से उसकी सदस्यता छिनेगी।
फिर से यह भारत की झोली में गिरेगी।
ड्रैगन फुँफकारे …
घिरेगा अब ड्रैगन हर वैश्विक मोर्चे पर।
देश की सीमा हो या कूटनीतिक मंच।
चाहे हो आर्थिक जगत का कारोबार।
कृष्ण वंशी बजेगी कालिया मर्दन कर।
ड्रैगन फुँफकारे …
ड्रैगन फुँफकारे, आग उगले कितना भी।
भारतवर्ष की सीमा न डरेगी, न काँपेगी।
ड्रैगन फुँफकारे …
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