ये सियासत ने जो दीवार खड़ी की है, ये दीवारें असली नहीं है।
जो उनके साथ नहीं थे उनमें कुछ के हड्डी नहीं है,कुछ के पसली नहीं है।।
इतने में भी उनको तसल्ली नहीं है ।
ये धर्मयुद्ध में ये मत पूछो कितने के घर जली नहीं है।।
सन्नाटें हैं हर तरफ, खून बही किस गली नहीं है।
हर तरफ बिखरी पड़ी है लाशें, क्या यह मानवता पर गाली नहीं है।।
बोलते हो हम हो गए सभ्य,फिर क्या यह नरबलि नहीं है।
अब भी बोलोगे क्या,यह कृत्य जंगली नहीं है।।
वो बताते हैं ईद है अपना, अपना दीवाली नहीं है।
कोई बताते हैं वो हैं अपने, जिनके टोपी में जाली नहीं है।।
अब भी कहते हो हम गुंडे और मवाली नहीं हैं।
तो कान खोलकर सुनलो हमारा भेजा खाली नहीं है।।
सब लगे हैं अपने अपने धर्म को बचाने में,
यहां खाना किसी के थाली नहीं है।
तुम! तुम तुच्छ मानव बचाओगे भगवान को ,
उनकी इतनी बदहाली नहीं है।
खुद फैलाये हो अंधेरा और कहते हो,
सूरज में लाली नहीं है।
उठो,बाहर निकलो इस पाखंड के चारदीवारी से;
अब बताना क्या यह दुनिया निराली नहीं है।
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