हमको आज कथा बतलानि है,
कुछ मर्दों को सीखलानी है।
हमको आज अपनी औकात बतानी है,
क्या है इनके पास जरा जो सब को आज बतानी है।
हर मर्दों में हम की बातें हैं,
नारी को निचा करने की ही बातें हैं।
आज नारी का सम्मान चाहिए,
ईनका पुरा अधिकार चाहिए।
नारी खूद को भुल गयी जो,
दामिनी बन वो लुट गयी जो
फिर भी अभी जो नहीं हो चेते,
खचद को तु पहचान जरा।
मिट्टी का तन है तेरे पास
मिट्टी का तन है मेरे पास,
सांसों का प्रणय है तेरे पास
सांसों का प्रणय है मेरे पास।
फिर यह दोनों दुजे कैसे,
सृष्टि के दो पहिए जैसे,
तुम बिन हम है आधे-आधे
हम बिन तुम हो आधे-आधे।
राधा बिन थे श्याम अधुरे
राम कहां सीता बिन पुरे,
गैरा बिन कैलाश अधुरी
तुम बिन नहीं यह सृष्टि पुरी।
खुद को नर उमनाद न समझे
तुम जाये हो नारी के,
इस पर तुम अधिकार न समझे।
नारी ही जननी सृष्टि की,
नारी से सुख समृद्धि सृष्टि की।
नारी का अपमान धरा पर महाप्रलय का सुचक है,
चिरहरण में कुल गवाई,
पर नारी में जात गवाई,
नारीशाप में ही कई राजाओं ने अपनी छाप गवाई।
फिर क्यों नारी अबला है
तु खपर सी कैलाशी बन,
रणचंडी सी तु मर्दन कर,
तु ही जग का सृजन कर ,
तच जग का नव सृजन कर।।
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