**** भारत एक विश्वगुरु ****
न रहे कुछ वीर रण में ,
अब तो हैं शत्रु अपने ही घर में|
न रहे साधु अब तपवन में,
अब तो हैं राक्षस हर डगर में|
न रहे भोले कण-कण में,
अब तो है पाखण्डी हर शहर में|
फिर भी दोहराता हूँ मैं इस मिट्टी की वो कहानी,
जब वीरों ने लहू से सींची थी ये रवानी|
आज़ाद, भगत, सुखदेव, राजगुरु ने अपना ख़ूँ बहाया,
और कई आज़ादी के सिरफ़ीरो ने अपना शीश कटाया|
उनके बलिदानो का ऋण रहेगा अपने हर एक जीवन में,
फिर लडेंगे कई अभिमन्यु इस कालयुगी रण में|
फिर जगेंगे दीर्घ विष्णु अपने एक स्वप्न में,
क्यूंकि हो रहा है चीरहरण द्रौपदी का हर एक आँगन में|
फिर से ग़ालिब की फ़क़ीरी का युग आयेगा,
सेठो की तिज़ोरी का धन न उनको सुख दे पायेगा|
फिर सुभाष के नारों पे अपना लहू उबलेगा,
कश्मीर क्या लाहौर में भी फिर अपना ध्वज फरेगा|
फिर गाँधी की डण्डे से अहिंसा की गूंज उठेगी,
तब जाके मानवता अपने सिंहासन बैठेगी|
फिर बौद्ध के शब्दों से कुछ तलवारें टकराएंगी,
छिन-भिन होकर वे पुष्पों में बदली जायेंगी|
सरहदों में वीरों का ये बलिदान व्यर्थ नही जायेगा,
उनमे शौर्य से फिर भारत विश्वगुरु बन पायेगा ||
– शिखर अधोलिया
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