अपने संग ले श्याम का रंग, भरे श्याम-दृश नवरंग विस्मय लोचन,
संत भी करें सब प्रेम-रस बहुगान, श्याम दीवानी मीरा भई जोगन |
प्रेम रस का करती रही, वो तो निस-दिन विस्तार बखान,
जीवन की एक ही अभिलासा, तन-मन का एक ही त्राण,
साँझ-पखारे मन-मुरली पुकारे जैसे नाम बस तेरा मोहन,
संत भी करें सब प्रेम-रस बहुगान, श्याम दीवानी मीरा भई जोगन |
जग-झूठा सलोना ही सत्य, रोग करे निरोग सब उसकी माया,
क्या हो जब लग जाए श्याम-रोग, दिन-दिन जलती उसमें काया,
रंग भी श्याम पिया भी श्याम, अब काहे का जग का रंग-रोगन,
संत भी करें सब प्रेम-रस बहुगान, श्याम दीवानी मीरा भई जोगन |
सखी सहेलियाँ सब गई हैं छोड़, मेरा तो बस मोहन प्यारा,
सब बैठे बीच मंझधारे, वही बस एक सर्व-व्यापक किनारा,
अब तुम्हरे हाथ ही हमारी कश्ती, करोगे बस अब तुम ही पोषण,
संत भी करें सब प्रेम-रस बहुगान, श्याम दीवानी मीरा भई जोगन |
किसने लिया है ऐसा जोग, किसने लिया है ऐसा रूप,
श्याम ही बस अब मेरी छाया, श्याम ही है अब मेरी धूप,
मेरा तो अब श्याम है स्त्रोत, श्याम ही मेरा अब है दोहन,
संत भी करें सब प्रेम-रस बहुगान, श्याम दीवानी मीरा भई जोगन |
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