राष्ट्रीयता पर 20 दोहे
बड़ी पुरानी सभ्यता, भारत की पहचान।
बहुरंगी झाँकी मिले, बनी विविधता शान।।
प्रगति आर्थिक सामाजिक, दिखते बहुआयाम।
भारत नित आगे बढ़े, जग में फैले नाम।।
राष्ट्रीय पहचान के, परिचय और प्रतीक।
मूल विरासत चिन्ह से, जागे भाव सटीक।।
गर्व हृदय अति जागता, गौरव-गाथा देख।
पृथक रही छवि देश की, पृथक रहा आलेख।।
गान गीत ध्वज देश का, भाषा, पशु, फल, फूल।
चिन्ह रहे सबके अलग, लिए विरासत मूल।।
राष्ट्रीय पशु बाघ है, ताकत फुर्ती रूप।
फूल कमल में शुद्धता, स्वर्ण किरण सी धूप।।
क्षैतिज आयत में बँटा, सम रहता अनुपात।
हरा श्वेत फिर केसरी, करे तिरंगा बात।।
सारनाथ स्तम्भ पर तो, चार खड़े हैं शेर।
सत्यमेव जयते कहे, धर्म चक्र का घेर।।
अन्तस भी गर्वित करे, जन-गण-मन का गान।
गाकर वन्दे-मातरम्, बढ़े स्वयं का मान।।
गंगा या भागीरथी, भारत की पहचान।
बरगद तरूवर देश का, फल में आम निशान।।
मन में नित निज देश की, गूँज रही जयकार।
अंतस चाहे ईश दे, जन्म यहीं हर बार।।
देख लिया जब जग सभी, मिला एक ही ज्ञान।
सबसे प्यारा देश है, अपना हिंदुस्तान।।
हुए धरा पर हिन्द की, ऐसे वीर सपूत।
गर्व करे माँ भारती, कुढ़ते रहें कपूत।।
झुक जाए सिर आप ही, मन में उमड़े मान।
मीठे स्वर में गूँजता, जहाँ देश का गान।।
प्रिय प्राणों से भी सदा, अपना भारत देश।
मधुर बसंती प्रीत सा, प्यारा ये परिवेश।।
सुनकर वन्दे-मातरम्, जन-गण-मन का गान।
सत्यमेव जयते कहे, झूमे हिंदुस्तान।।
अंडमान रामेश्वरम, दमन लेह कश्मीर।
अरुणाचल गुजरात सब, गुथे एक जंजीर।।
पुलकित मन करते रहें, देशभक्ति के गान।
सबसे प्रिय हैं भाव ये, आन-मान पहचान।।
लहर-लहर लहरा उठा, पुलक तिरंगा आज।
व्यग्र हुई जाती हवा, पहनाने को ताज।।
तीन रंग की है ध्वजा, हरा केसरी श्वेत।
सदभावों की रागिनी, देती शुभ संकेत।।
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