सुमेर
नब्ज़ जब जम सी गयी थी,
साँस जब थम सी गयी थी,
अंधियारा चारों ओर था,
हज़ार- टन दबाव में जब हमारा वो ठोर था,
वो साल था 1971 का,
जब चारों तरफ़ समन्दर का ही शोर था।।
हम सुमेर से डटे हुए थे,
थोड़ा सा बटे हुए थे,
एक अनदेखी अनसुनी सी जंग में,
हमारे पाँव जमे हुए थे।
वो साल था 1971 का,
जब दुश्मन के दाँत खट्टे हुए थे।।
हम उस समन्दर से लड़े,
PNS- ग़ाज़ी के सामने थे खड़े,
वीरता का ऐसा बेमिसाल नज़ारा फ़िर कभी ना देखा किसी ने,
उस जंग में थे खतरे इतने बड़े,
S-21 के थे वो वीर जाँबाज़,
जिन्हें करता है आज भी देश सलाम,
आने वाली पीढ़ी भी याद रखेगी वीरता का वो मंज़र,
जिसने किया था पाकिस्तानी मंसूबों का काम तमाम।।
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